इनकी रील और वीडियो तो आपने सोशल मीडिया पर खूब देखी होगी, मगर आप क्या इन्हें जानते हैं?

उत्तराखंड में संस्कृति के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें तो हर कोई करता है मगर क्या आप जानते हैं इस संस्कृति को संजों कर रखने वाले, हर गाने पर अभिनय देने वाले, इन लोककलाकारों के बारे में।


तस्वीर में दिखने वाली दिव्या नेगी भी उन चुनिंदा लोककलाकारों में है जिन्होंने उत्तराखंड के गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी तीनों लोक भाषाओं में बनने वाले गीतों में अभिनय दिया है। यही नहीं दिव्या इंस्टाग्राम पर रील के माध्यम से भी उत्तराखंड के पहनावे व वेशभूषा के साथ उत्तराखंडी कला व संस्कृति को पहचान दे रही हैं। इसका अलावा ठुमका गीत जो इन दिनों संस्कृति के रक्षकों के निशाने पर है, उस गीत के लिए भी इनको एप्रोच किया गया था। 

हमारे साथ साझा की गई जानकारी में दिव्या नेगी ने रील से इतर अपने बारे में कुछ अन्य जानकारियाँ दी हैं जो शायद पर्दा गिरते हुए दर्शकों को मालूम नहीं चलती। तो आइए दिव्या नेगी से की गई गपशप में उनके रियल लाइफ में छुपे किरदार को जानते हैं।   

दिव्या नेगी का होमटाउन / पढ़ाई-लिखाई और हाॅबीज 

उत्तराखंडी लोक कलाकार दिव्या नेगी का होमटाउन पौड़ी है। उनका संबंध पौड़ी के पुलयासा गाँव से है। उनका जन्म मेरठ (यूपी) में हुआ है। यही से इनकी स्कूली शिक्षा हुई। दिव्या ने अपना ग्रेजुएशन देहरादून के डीबीएस काॅलेज से किया है। उन्होंने अपना पोस्ट ग्रेजुएशन भी डीबीएस काॅलेज से इंग्लिश विषय से किया है। 


इंग्लिश विषय से पोस्ट ग्रेजुएशन की देहरादून से पढ़ी फिर ये लोककला में कैसे पहुंच गई?

 इस सवाल पर जवाब देते हुए वो कहती हैं कि "उन्हें अभिनय का शौक है इसलिए लोक गीतों में अभिनय करती हूँ। पैसे तो वैसे भी इस फील्ड में कम हैं इसलिए पैसा या मजबूरी के कारण ये क्षेत्र नहीं चुना। बस लोकगीतों में अभिनय करना अच्छा लगता है इसलिए कर रही हूँ।"

पेंटिंग का है शौक

दिव्या को पेंटिंग का भी बहुत शौक है वो कहती हैं खाली समय मिलता है तो पेंटिंग कर लेती हूँ मगर कुछ वक्त से बहुत से प्रोजेक्ट में काम करने के कारण उन्हें अपने लिए वक्त नहीं मिल पाता।  

वे निजी जिंदगी के बारे में बताती हुए कहती हैं कि वे एक शर्मीली लड़की है। यही वजह है लोकगीतों में अभिनय करने के बावजूद वो लोगों से जुड़ नहीं पाती। 

इन गीतों ने दी पहचान 

दिव्या 4 साल से उत्तराखंडी लोकगीतों में अभिनय दे रही हैं। वे बताती हैं उनकी पहचान "6 नंबर पुलिया" गीत से उन्हें मिली। ये वही गीत है जिसने उत्तराखण्ड के दो लोकगायकों संजय भंडारी और अनीशा रांगड़ को भी पहचान दी है। .

दिव्या ने अबतक कई सारे कुमाऊंनी, गढ़वाली और जौनसारी गानों में अभिनय किया है। उनमें से 6 नंबर पुलिया (गढ़वाली), मेरु लहंगा 2 (कुमाउंनी), सोबानू, काजल-काजल, नेपाली रासू, नथुली, गजरा और सुर्मायाली तेरी अंखिये (जौनसारी) गीत खासा चर्चित रहे हैं। उन्होंने उत्तराखंडी गीतों के अलावा हिमाचली और हिंदी गानों में भी  किया है। 


इंटरनेट पर वायरल ठुमका गीत के लिए भी हुआ था एप्रोच

इंटरनेट पर लोक संस्कृति पर बहस बना हुआ ठुमका गीत में अभिनय के लिए उनसे भी संपर्क किया गया था। मगर गाने की फूहड़ता की मांग सुन उन्होंने इस गाने में अभिनय से मना कर दिया। 

वे उत्तराखण्डी गाने में फूहड़ता पर पूछे गए सवाल पर कहती हैं ये सच है कि उत्तराखण्ड में अच्छे गाने लोग पसंद करते हैं मगर उन्हें उतना अटेंशन नहीं मिलता जितना कि फूहड़ता से भरे गाने को। मुझे लगता है इस मामले में दर्शकों को ही अच्छे गाने को बहुत सराहना और प्यार देना चाहिए जिससे गायकों के मन में उठने वाले भ्रम पर रोक लगे।  
खबर पढ़ें - जब मैं गढ़वाली गीत गाता था तो लोग कहते थे, गढ़वाली गीत क्यों गाता है, फ़िल्मी गीत गा!


इस अवार्ड से जल्द होंगी  सम्मानित

उत्तराखण्ड के हिमाद्री फिल्मस द्वारा 6 अगस्त को देहरादून में आयोजित होने वाले "देवभूमि लोक सम्मान" समारोह में उन्हें लोक कलाकार के रूप में उन्हें सम्मानित किया जा रहा है।



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